जीवन के दुखों को पीकर दिल नीला हो गया। भावनाओं की तूलिका से घूमता हूँ सीने की हरियाली में, जहाँ मैं ढोता फिरता हूँ दुख, जो आँसू बनकर निकलते हैं। ये दुख भी तो प्यार से ही एक पता हैं।
पपी चहारिया
दारंग, असम
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2 thoughts on “पता”
बेहतरीन भाव आदरणीया
एक निवेदन है शब्दों की सजावट पर थोड़ा ध्यान दीजिए।
बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं
बेहतरीन भाव आदरणीया
एक निवेदन है शब्दों की सजावट पर थोड़ा ध्यान दीजिए।
बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं
आदरणीया
अंतिम भाव अगर ऐसे लिखे तो ज्यादा अच्छा रहेगा
यह दुःख भी तो
प्यार का ही
एक पता है।