पता

जीवन के दुखों को
पीकर
दिल नीला हो गया।
भावनाओं की तूलिका से
घूमता हूँ
सीने की हरियाली में,
जहाँ मैं ढोता फिरता हूँ
दुख, जो
आँसू बनकर निकलते हैं।
ये दुख भी तो
प्यार से ही
एक पता हैं।

पपी चहारिया

दारंग, असम

2 thoughts on “पता

  1. विक्रमादित्य सिंह, अध्यक्ष, विश्व हिंदी परिषद, ओड़िशा प्रदेश says:

    बेहतरीन भाव आदरणीया
    एक निवेदन है शब्दों की सजावट पर थोड़ा ध्यान दीजिए।
    बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं

  2. विक्रमादित्य सिंह, अध्यक्ष, विश्व हिंदी परिषद, ओड़िशा प्रदेश says:

    आदरणीया
    अंतिम भाव अगर ऐसे लिखे तो ज्यादा अच्छा रहेगा
    यह दुःख भी तो
    प्यार का ही
    एक पता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *