क्या से क्या हो गये हम

इश्क की आग में हम दोनों कुद गये थे,
आग की तपिश तो छू भी ना सकी तुम्हें
पर हम आज भी उस में जलकर खाक होते रहते हैं।

इश्क के समंदर में हम दोनों डुब गये थे,
तुम तो तैर कर किनारा कर गये,
पर हम अब भी समंदर में किनारा ढूंढते रहते हैं ।

ख्वाबों के आगोश में हम दोनों डुब गये थे ,
ख्वाबों के हर रंग से तुम जिंदगी संवार लिए,
पर हम अपने बेरंग जिंदगी को आज भी जीते रहते हैं।

कल्याणी नन्द

बुढारजा, संबलपुर

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