मोहब्बत – ऐ – तन्हाई

तनहाई से क्या रुसवा करना
तनहाई में मुकद्दर सजती है
यूं तो लोग कहते हैं कि
हम तेरे बिन जी नहीं सकते
पर कुछ यादें जिन्दा रखती है

न जाने किस गलतफहमी में
यूं भटकते फिरते रहते हैं
उनको अपना मानने लगे
जो कभी हमारे थे ही नहीं
फिर भी उनपे ऐत ऐतबार करते हैं

इस दिल की कस्ती में
उनको सवार कर लिया
जो अपना कभी बना ही नहीं
उस पर दिल दीवाना हुआ
जिसके पास दिल था ही नहीं ।

हमने तलाश की खुदा की वहां
जहां इंसान ही बसते हैं
दिल लापता हो गया उस बस्ती में
जहां भीड़ तो है , बस तन्हाई रहती है

अब खुदा से दुआ करते हैं
बहुत हुआ ये नादान इश्क
अब हम अपने तन्हाई से
ऐलान ए मोहब्बत करते है ।

सिनू

सम्बलपुर

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