
इमारत
इमारत बस इमारत नहीं होतेइनमें कुछउम्मीद, कुछ लगन कुछ जज्बा होते हैंमेहनत ओर मोहब्बत सेसज संवर कर जब एक दीवारअपने सर पे छत रखकरहमें पन्हा देती हैउसे इमारत कहते हैं महलों कि चाहत तुम्हें मुबारकअकसर हम जमीन पर लेटकरखिड़की से जब जिंदगी को तलाशते हैंसर्दी, गर्मी, बारिश आके हमेंगले लगाते हैंतुम्हें याद हो शायदइस धरती…