वजह न पूछो जीने कि…!
हम वेवजह ही जीते रहे
दरिया पास हि था…
किनारे में पानी ढूंढ़ते रहे ,
वजह न पूछो रोने कि…!
हम वेवजह ही रोते रहे
हसीं तो आई ही थी..
रोने कि लत लगते गए,
वजह न पूछो पीने कि…!
हम वेवजह पीते रहे
पानी और सराव दोनों थे
सराब से मोह लगते गए…!
वजह पूछो न सो ने कि…!
हम वेवजह ही जागते रहे
नींद तो आई जोर की
न सोने को लत लगते गए…!
यह वजह वेवजह कि दुनिया में
हम सारे मुसीवत निभाते गए
कोइ वजह न ढूंढा!!
मसलन वजह ही बनते गए !
दिनकृष्ण..