मोहब्बत की राह पर

चुननी है राह कोई गर तो

चुन लो राह मोहब्बत की।

चलना है दूर गर, बहुत दूर तलक तो

साथ लेके चलो उन्हें,

जो पग पग साथ चले;

सफ़र को मुकम्मल करें

साथ मिल कर तुम्हारे।

नफ़रत को चुना है जो कोई कभी

उसे हासिल भी हुआ क्या है?

कभी खुशी उससे दूर भागी तो

कभी अपनों का साथ छूटा है!

अहं को साथ लिए

गुरुर जो छोड़ा नहीं कभी

वो गर आगे निकल भी गया तो

उसे मिला क्या है?

ज़िंदगी की सफ़र में

वो खुद को अकेला ही पाया हमेशा

सदा अकेला ही रह गया है!

इसलिए ही तो

मोहब्बत की इस राह पर

बस तुम चलते रहो,

खुद्दार एक राही बन; कि

मोहब्बत तुम्हारे साथ चले

सच्चा एक हमराह बन

और जारी रहे ये सफ़र

जारी रहे ये सफर!!!

प्रीतिप्रज्ञा प्रधान

भुवनेश्वर

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