बाबुल तेरा घर

याद आए बाबुल तेरा घर वो तेरा गांव,
याद आती मlई तेरी पीपल की वो छांव।
याद आए झूला मेरा याद आती गुड़िया,
याद आती दादी अम्मा मीठी गोली पुड़िया।
याद सताए बहना तेरी मीठी मीठी बातें,
याद आए गर्मी के दिन बरसातों की रातें।
याद आती नानी मेरी ममता की वो मूरत,
याद आए भाई मेरा भोला भाला सूरत।
आयेगी जब भाबी मेरी राम सिया की जोड़ी
बहने फीका पड़ेंगे उसके सामने थोड़ी थोड़ी।
छोटी बहना करे सरारत बड़ी ही प्यारी प्यारी,
उसकी प्यारी सी हंसी पे जाऊ मैं वारी वारी।
मlई तेरे घर की मिट्टी लगे मुझको तो चंदन,
हर पल याद सताए बाबुल तेरे घर के आंगन।
दादाजी की लाडो थी में थी में घर की रानी,
राजकुमारी सी पाले मुझको मेरी प्यारी नानी।
पढ़ने जाऊं साथ चलती थी बूढ़ी अम्मा मेरी,
कितने प्यारे दिन वो बीते बाबुल छाया में तेरी।
याद आती प्यारी प्यारी सखीयां और सहेली,
याद आए रूठना मनाना भाई बहन की टोली।
बाबुल तेरी नज़रों से छुपाके घर घर खेली,
बाबुल के आते समय ही डर से किताबें खोली।
मlई बनाती खट्टी मीठी आचारों के वो डिब्बे,
आम इमली अlवला के आचार और मुरब्बे।
मlई तेरी बाड़ी के वो मीठे मीठे आमl,
चूल्हे पे चिला बनाती मेरी दादी अम्मा।
तेरे आंगन की तुलसी भी माई याद सताए,
उस आंगन से चांद भी कितना उजला नजर वो आए।
बहना को सीने से लगाके मिलती है जो सांति,
धरती जैसी दादी अम्मा आंखे पसारे बैठी।
घर तेरा मंदिर लगता है बता दूं माइ तुझको,
चलता फिरता भगवान लगे है बाबुल मेरे मुझको।

प्रणति साहू,

प्रोफेसर कालोनी रायपुर

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