बदल दिए है हमने अब
नाराज होने का अंदाज
रूठने के बजह सिर्फ
मुस्कुरा दिया करते हैं
कोई समझता नहीं
दर्द ऐ अल्फाज हमारे
बे बजह किसी को
दर्द दिया नहीँ करते
समझ लेतेहै इरादा लोगों का
कोई हुम् दर्द कंहा यहां
कोई नाराज देख के खुस तो
कोइ नाराज कर के।
हुम् तो आंसुओं को भी
समझा दिया करते है
बजह बे बजह हमे
नम न किया करें ।
तुम परेशान हुआ मत करो
हुम् कबके तन्हा रहना सीख चुकेहैं
आंखे तो सूझी सूझी रहती हैं
पर दिल को समझा चुके हैं।
प्रीति
सम्बलपुर