पुरुष

औरत होना आसान नहीँ
पर पुरुष होना क्या आसान है
कौन कहता है पुरुष पत्थर की
तरह शक्त होता है।

पुरुषों के भी संवेदनाऐं होते हैं
उनके भी जज्बात होते हैं
उनमें भी ओरत की तरह
सहनशीलता होती है।

वह दिखाते नहीँ कभी
जताते भी नहीँ
उनकी भी आखें नम् होती हैं
और जिम्मेदारियाँ ताउम्र
कहीँ ज्यादा ही होती हैं।

हम ओरतों को लगता है
हम उन्हें बाखूबी समझते हैं
पर ये पुरुष भी हमारी
समझ से परे हैं।

जब तक सांसे चलती हैं
ये भी अपनी भूमिका
निभाते चले जाते हैं
कभी बाप कभी बेटा कभी भाई
कभी दोस्त कभी हमसफर बनकर।

सिर्फ परिवार समाज या देश
के लिए नहीँ ये भिन्न भिन्न
किरदारों में अपने आप को
ढालने का हुनर भी रखते हैँ।

क्या इन्हें कभी हमने गहराई से
समझा ने की कोशिश की
अगर नहीं तो अब करते हैं
चलो एक नई सोच की
सुरुआत अभी करते हैं।

संगीता मोहन

भवानीपटना, कालाहांडी

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