धागे कटी पतंग के

कभी कभी दिल से दूर, अलग थलग,
अकेले पड़ जाते हैं कई रिश्ते!
न जाने कब अनजाने में ही
हाथ से फिसल जाते हैं वो रिश्ते,
जो कभी बेहद अज़ीज़ हुआ करते थे,
दिल के करीब रहा करते थे!
पर अचानक नहीं होता ये सब।
कोई रिश्ता यूं ही फिसलता नहीं है हाथ से।
किसी छोर से सरक जाती है मिट्टी,
जो रिश्ते में मजबूती की नींव हुआ करती थी कभी!
कभी चोट पहुंचाती है किसी की उदासीनता!
कभी दिलों के बीच में दरक जाता है विश्वास!
कभी भर नहीं पाते हैं बीच की बढ़ती हुई दूरियां!
और यूं ही वो रिश्ता
हम से दूर, और दूर होते जाता है!
फिर चाह कर भी वो वापस नहीं आता है हाथ में!
समेट नहीं पाते हैं हम
टुकड़ों में टूटे रिश्ते के उस डोर को!
बेहद, बेहिसाब करीबी रिश्तों के धागे भी
कट जाते हैं कभी कभी;
चाहे अनजाने ही सही।
और देर तक, काफ़ी देर तक
वो रिश्ता यूं ही लटकता रहता है
दिल के किसी शाख पर
कटी पतंग की तरह !

प्रीतिप्रज्ञा प्रधान
भुवनेश्वर

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