दीवाना कहता जमाना मुझको।
परवाना पागल माना मुझको।।
कौन सा वक्त चुनु तुम तक आने को।
पल पल बीता जाए तुम्हें मनाने को।।
हृदय हृदय टटोल लिया।
मिला ना तेरा रोशन दिया।।
कौन दिखाएं तेरा मार्ग।
रटी रटाई दोहराए तेरी राग।।
जोर-जोर हिलाकर जगाना मुझको।
परवाना पागल माना मुझको….
प्रेम भरी वाणी में कैसे गाऊं।
आग पतंगों की लगाई कैसे बुझाऊं।।
तूने जो सदमार्ग सबको दिखाया।
कण-कण को अपना नाम सिखाया।।
कहां-कहां नहीं है तू लोग तेरी खबर बताएं।
तेरे होने की बात चिल्ला चिल्ला कर जताएं।।
हर बार तेरे आने का इंतजार मुझको।
परवाना पागल माना मुझको……
तोड़ दूं तेरे मेरे बीच की दीवार कोई।
तुझे याद करके मेरी आंखें कितना रोई।।
आवाज मेरी काश तेरे तक पहुंच जाती।
पैगाम खुशियों के बहती हवाएं लाती।।
तुझसे दूर जाने का ना मिलता बहाना मुझको।
परवाना पागल माना मुझको…..
तेरे सिवाय मेरा बता कौन सहारा।
अपने दर्द बता बताकर मैंने कितना पुकारा।।
तेरे खयालों में जब मैं खो जाता।
अनकही बातें भी नादानी में बोल जाता।।
चलते हुए रास्तों पर रोकना मुझको।
परवाना पागल माना मुझको…..
तू सांसे तू धड़कन तू रोम रोम की कंडिका हो।
तेरे इशारों पर झूमे ब्रह्मांड तू मेरी दंडिका हो।।
जाऊं मैं गली गली तेरे नाम की फेरू माला।
तेरी कृपा हर पल बरसे तू मधुर बाला।।
जिज्ञासा जागी मेरी अपना बनाना मुझको।
परवाना पागल माना मुझको…..
योगेंद्र नाथ “योगी “
छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)