दास्तां ने मोहब्बत


ग़म है क्या
तुम्हे बताएं कैसे
एसे या वैसे
सोचता हूं
अब जिया जाए केसे
गम है क्या……..।

संगे मर-मर के
मदहोशी ने
हमे मार डाला
अब सोचते हैं हम
तूम्हे चान्द बुलाएं केसे
ग़म है क्या…..।

इन लहरों में हम
खूद को तलाशते हैं
अपनी कश्ती को
बार-बार संवारते हैं
कभी तो तुम आओगे
यै दिलासा दिल को
दिलाएं केसे
ग़म है क्या……।

तोड़ना था अगर तुम्हें
दास्तां ने मोहब्बत को
दर दर भटकता ये दिल तुम्हें
दर्द ए दिल कि दवा
आखिर बताएं केसे
ग़म है क्या……।।

तफिजुल

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