धारा के उलट प्रवाह में चलना होगा
कष्टों कि पीड़ा को हंस के सहना होगा
होगा दूर पर तुझे, क्षितिज तक पहुंचना होगा
कस कमर तुझे अविराम चलना होगा
तानों के कटु तीक्ष्ण घातक तीरों का
पग पग घायल करती कुटिल चालों का
करना है प्रतिकार तुझे शंखनाद करना होगा
कस कमर तुझे अविराम चलना होगा
चहुंओर है घोर तिमिर घेरेंगे निशाचर भी
पग पग आकर फंदे डालेंगे भंवर भी
चक्रव्यूह अब अभिमन्यु निश्चित तोड़ना होगा
कस कमर तुझे अविराम चलना होगा
लालच कि चालों को माया के जालों को
कतरे जो गौरय्या के कोमल पंखों को
स्वार्थ के कनक तारों को निस्वार्थ तोड़ना होगा
कस कमर तुझे अविराम चलना होगा
हैं धरा जगत प्यारी कण कण क्यारी क्यारी
विभिन्न पुष्पों से सजी धजी है ये फूलवारी
सजग प्रहरी ऐ वन माली तुझे रहना होगा
कस कमर तुझे अविराम चलना होगा।
विशालकुमार विशाल
प्रतापगढ़ – राजस्थान