जहां न पहुंचे रवि वहां पहंचे कवि।
चांद उतlरे धरती पे बने अनुपम छवि।।
रेगिस्तान में बहा दे झरना प्यास बुझादें सभी।
जहां न पहँचे रवि वहां पहँचे कवि।।
हथियार उसका लेखनी भावनाएं हैं सभी।
कल्पनाओं से समाहित है मन है अनुभवी।।
जहां न पहंचे रवि वहां पहँचे कवि।।
पतझड़ के मौसम में ले आए सावन छवि।
ग्रिस्म के तांडव में वर्षl छाए तभी।।
जहां न पहंचे रवि वहां पहँचे कवि।।
ऐसा भाव रचे कलम में भावुक हो जाए सभी।।
राजा से भी सम्माननीय कहलाता है वो तभी।।
जहां न पहंचे रवि वहां पहँचे कवि।।।
कविता उसकी सोभा है अलंकार से हावी।
अंlके छवि ऐसा की मन मोह ले सभी ।।
जहां न पहंचे रवि वहां पहुंचे कवि ।।
परिनीति