काश अगर मैं इंसान नहीं होता

काश अगर मैं इंसान नहीं होता
दिल मेरा क्लेशों से भरा नहीं होता
न मैं किसी के प्रगति से जलता
न किसी के खुशियों पर आहें भरता
काश अगर मैं इंसान नहीं होता।

न मैं हिंदी-मुस्लिम करता
न मंदीर-मस्जिद के झगड़े में पड़ता
न गीता की झूठी कसमें खाता
न बाईबिल, कुरान पर तंज कसता
काश अगर मैं इंसान नहीं होता।

न सियासत में तीन-पाँच करता
न भ्रष्टतंत्र का हिस्सा बन आँखें चुराता
न धन – शोहरत का लालसा रखता
न छल-कपट, प्रपंच रचता
काश अगर मैं इंसान नहीं होता।

न जात-पात करता, न लिंगभेद करता
न ऊँचे होने का दंभ भरता
न नीच होने का अवसोस करता
न करता कानाफूसी, न चापलूसी करता
काश अगर मैं इंसान नहीं होता।

न नौकरी की आस, न व्यापार का नुकसान
न ओहदे का अहंकार, न पढ़ालिखा बेरोजगार
न ख्वाईशें, न फरमाइशें, न जोर, न अजमाईशें
न सुख में इतराता, न दुख में आँसू बहाता
काश अगर मैं इंसान नहीं होता।

हर दिन हर हाल में बस अपने दम पर जीता
उन्मुक्त गगन में उड़ता, कुदरत से बातें करता
न भूत-भविष्य की चिंता करता
न वर्तमान से खफा-खफा रहता
काश अगर में इंसान नहीं होता
दिल मेरा क्लेशों से भरा नहीं होता।

विक्रमादित्य सिंह
अध्यक्ष, विश्व हिंदी परिषद
ओड़िशा प्रदेश
9861347125

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