इश्क़ की सजा

 छुपा के खंजर दोस्त बार करते हैँ
  दुश्मन तो दुश्मनी निभाने मैं भी
   ईमानदार होते हैँ || 
  हम तो वह परवाना हैँ
  जिसको समा भी बुलाती हैं
 जल जाने के लिए
 अब किसे समझाये हम
चिराग के बुझने मैं क़सूर
हर बार हवा की नहीं होती हैं

पतझड़ सी हो गई हैं ज़िन्दगी
अब तो बहारों की खयाल से भी
रूह कांप जाती हैं.

         सुश्री संगीता

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