आज कितने अपरिचित हो

आज कितने अपरिचित लगते हो
वो हसी है वही नजाकत
फिर भी अधूरे लगते हो
वो नटखट पन वही शरारत
फिर भी पराये लगते हो
आज कितने अपरिचित लगते हो।

वही नीला आसमान आजभी है
बारिस की बूंदे भी वही तो है
आज भी काली घटा देख
मोर् थिरकती है
मिट्टी की खुश्बू ,सूरज की लाली
सबकुछ तो पहले वाली है
फिर भी कितने अपरिचित लगतेहो

वही मुस्कान आज भी है
होंठो पे तुम्हारे
चाहत वही आज भी
आंखों के किनारे
हात भी वही छुअन भी वही
फिर भी अपरिचित लगते हो

मन वही सौक वही
निभाने का ढंग जरूर बदल गया है
भाव वही भावुकता वही
सोचने का ढंग बदल दिया है
वही कबिता वही काहानी
आज भी बयां करते है
कहानी तेरी मेरी नहीं
पर कुछ तो बता देते है
सब कुछ पहले सा
फिरभी अपरिचित लगते हो

आज तो डरावना है
कल बहुत सुहानी थी
वो पल भी कितना प्यारा था
चारों और हरियाली थी
सब जगह सूखा है आज
अंदर बाहर सुना सुना
पल पल याद तुम्हारा रुलाता है
कितने अपरिचित लगते हो
तुम कितने अपरिचित लगते हो

प्रीति

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