आंसू के अमृत

अकसर में यूंही रो लेता हूं
आंसू को अमृत समझ कर पि लेता हूं
खुशनसीब हूं मैं
तलाश करता नहीं कहीं उसको
लोगों के चेहरों में
उसे ढूंढ लेता हूं
अकसर में यूंही रो लेता हूं
आंसू को अमृत समझ कर पी लेता हूं

मुस्कुराते उन पलों को
गुजरते देखा है हमने
गमों को
दास्तान बनते पाया है हमने
छोड़ो बेकार के इन बातों को
सिर्फ बातें हैं
इन्हें बातों में रहने दो
हिसाब किसके पास है
क्या खोया क्या पाया हमने

चलो एक फ़र्ज़ निभाते हैं
हर आंखों में सपने
और होंठों पर मुस्कान सजाते हैं
पंख जोड़कर
एक उम्मीद कि छलांग लगाते हैं
जिंदगी का क्या ठिकाना
चलो जन्नत यही बनाते हैं

हाथों के लकीर कब-तक
यूं ही पंथ पर रोड़े डालेंगे
पैरों के जंजीर को तोड़
अपने लिए ढाल बनाते हैं
कहानी खुब बनते देखा हमने
पन्नों में लिपटे
इन्सान को सिसकते देखा हमने
इसलिए अकसर में यूंही रो लेता हूं
आंसू को अमृत समझ कर पि लेता हूं ।।

तफिजुल हुसैन
सम्बलपुर, उड़िसा
9439221989

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