*”प्रथम पूज्य आराध्य गजानन”*

 
 
वक्रतुण्ड, हेरम्ब आपका,नित प्रति करते हम आराधन।
 ‘श्रीगणेश’प्रभु तुमसे होता,प्रथम पूज्य आराध्य गजानन।।
भद्रकारिणी आय चतुर्थी , मोद मिले जब आप पधारे।
मोद संग मोदक मिलते हैं , संकटनाशक संकट टारे।।
भक्तों की आशा पूरी हो,कोविड भागे करता क्रंदन।
श्रीगणेश प्रभु तुमसे होता,प्रथम पूज्य आराध्य गजानन १।
  
कान बडे़, हम सबकी सुनते,आँखें छोटी,सूक्ष्म देखते।
लम्बोदर में इधर-उधर की,बात सभी की उसमें रखते।
हाथी सी हस्ती हैं फिर भी,करते हैं मूषक को वाहन।
श्रीगणेश प्रभु तुमसे होता,प्रथम पूज्य आराध्य गजानन २ ।
मिलकर सभी साथ में रहते,शिवकुल के परिजनअरु प्राणी
वृषारूढ़ हैं तात तिहारे , सिंहारूढा़  मातु भवानी।
सर्प-मोर-मूषक से बैरी, बैर भूल करते अभिवादन।
श्रीगणेश प्रभु तुमसे होता,प्रथम पूज्य आराध्य गजानन ३।
‘भालचंद्र’ लगते सुखदाई, गिरिजा सुत,कार्तिक के भाई।
सिद्धि-बुद्धि के नाथ आपको, ‘चंद्र’ नमन करता हरषाई।
धूप-दीप-नैवेद्य चढ़ाकर , पत्र-पुष्प से करता अर्चन।
श्रीगणेश प्रभु तुमसे होता,प्रथम पूज्य आराध्य गजानन ४।

 
—कवि चन्द्रप्रकाश द्विवेदी , प्रतापगढ़ (राजस्थान)

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