तन्हाई में लिपटा भीड़

जब तु पास नहीं होता है,

यह शाम की हवा-

मेरे  चारों तरफ

तनहाई का भीड़ जमाती है;

आंखों में-

इन्तजार का बाजार लग जाता है!

जब तु पास नहीं होता-

ये चांद और तारे

जुगनू की भाति,

मेरा दिल बहलाने में जुट जाते हैं,

सहर भर के रास्ते-

मेरे साथ-साथ ही हैं चलते,

और-

रास्ते भर के पेड़-पौधे

मुझे दो घडी रोक

बातें जमा लेते हैं!

और

 तु पास होता है तो

मेरे इर्दगिर्द तेरे प्यार की-

तन्हाई की लकीर खिंच जाती है,

सारे पेड़, पौधे, रास्ते, चांद, तारे और हवा-

शहर की अन्जाने सी गली में,

अपना भीड़ लिए नजाने कहाँ छूट जाते हैं!

फिरभी, नजाने क्यों….

तेरे नहोने से ऊमडे-

उन तमाम भीड़ से ज्यादा,

दिल को-

तेरे पास होने की तनहाई ही भाति है!

डॉ इप्सिता प्रधान

One thought on “तन्हाई में लिपटा भीड़

  1. विक्रमादित्य सिंह, अध्यक्ष, विश्व हिंदी परिषद, ओड़िशा प्रदेश says:

    बहुत सुंदर भाव
    विरह वेदना का सजीव चित्रण

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